अतिचालक पदार्थ (Superconductors) : ऊर्जा और तकनीक में क्रांति

प्रस्तावना

ऊर्जा आधुनिक युग की सबसे बड़ी जरूरत है। बिजली से लेकर कंप्यूटर, परिवहन से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं तक—हर जगह ऊर्जा का उपयोग हो रहा है। लेकिन ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा विद्युत प्रतिरोध (Electrical Resistance) के कारण नष्ट हो जाता है। अगर बिजली को बिना किसी हानि के प्रवाहित किया जा सके, तो यह मानव सभ्यता के लिए एक नई क्रांति होगी। यही काम करते हैं अतिचालक पदार्थ (Superconductors)

अतिचालक पदार्थ क्या हैं?

सामान्यत: जब धारा किसी चालक (जैसे तांबा या एल्युमिनियम) से गुजरती है तो वह प्रतिरोध का सामना करती है, जिससे ऊर्जा गर्मी के रूप में नष्ट होती है। लेकिन अतिचालक पदार्थों में ऐसा नहीं होता।

  • जब इन्हें अत्यधिक ठंडे तापमान पर रखा जाता है, तो इनमें से विद्युत प्रतिरोध समाप्त हो जाता है।
  • धारा अनंत समय तक बिना ऊर्जा हानि के प्रवाहित हो सकती है।
  • यही कारण है कि इन्हें ऊर्जा और तकनीक के भविष्य का आधार माना जाता है।

4.2 k (– 268.8°C) पर पारा अतिचालक बन जाता है, अर्थात् उसका विद्युत प्रतिरोध शून्य हो जाता है, यदि उस समय उसमें धारा प्रवाहित की जाए तो वह अनन्त काल तक बहती रहेगी, उसमें कोई कमी नहीं आएगी। कुछ मिश्र धातुएं, जैसे—नियोबियस्टन काफी ऊंचे ताप पर भी अतिचालकता प्राप्त कर लेती है

अतिचालक का दूसरा महत्त्वपूर्ण गुण यह होता है, कि वह पूर्णतः प्रतिचुम्बकीय होता है, अर्थात् वह पूर्ण ‘चुम्बकीय कवच’ होता है जिसे कोई चुम्बकीय बल-रेखा भेदकर उसके अन्दर नहीं जा सकती है। कोई पदार्थ जिस ताप पर अतिचालक बनता है उसे उसका ‘क्रांतिक ताप’ (Critical temperature) कहते हैं।

अतिचालकता की खोज

अतिचालकता की खोज 1911 में डच वैज्ञानिक हाइके कैमरलिंग ओनेस ने की, जब उन्होंने पारे को बहुत ठंडा करके −269 °C (लगभग 4.2 K) तक लाया और देखा कि उसकी विद्युत प्रतिरोधकता अचानक पूरी तरह गायब हो गई। इस अद्भुत खोज के लिए उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार मिला। 1933 में वाल्थर मैस्नर और रॉबर्ट ऑक्सेनफेल्ड ने पाया कि अतिचालक पदार्थ न केवल शून्य प्रतिरोध दिखाते हैं, बल्कि वे चुंबकीय क्षेत्र को भी अपने अंदर नहीं आने देते, जिसे मैस्नर प्रभाव कहा जाता है। कई वर्षों तक वैज्ञानिक यह नहीं समझ पाए कि ऐसा क्यों होता है, लेकिन 1957 में जॉन बार्डीन, लियोन कूपर और जॉन श्रिफर ने बीसीएस सिद्धांत दिया, जिसमें बताया गया कि इलेक्ट्रॉन आपस में जोड़े (कूपर युग्म) बनाते हैं और बिना रुकावट के बह सकते हैं। इसके लिए उन्हें 1972 में नोबेल पुरस्कार मिला। आगे के वर्षों में अलग-अलग धातुओं और यौगिकों में अतिचालकता देखी गई, लेकिन यह बहुत ठंडे तापमान पर ही संभव थी, जिससे इसका उपयोग सीमित रहा। 1986 में जॉर्ज बेडनॉर्ज़ और अलेक्स म्यूलर ने तांबा-ऑक्साइड यौगिकों में 35 K पर उच्च तापमान अतिचालकता की खोज की और इसके लिए उन्हें 1987 का नोबेल पुरस्कार मिला। इसके बाद 100 K से भी ऊपर तापमान पर अतिचालक पदार्थ मिल गए, जिससे इनके उपयोग की संभावनाएँ जैसे चुंबकीय ट्रेन, एमआरआई मशीन, बिजली का बिना हानि के संचरण और क्वांटम कंप्यूटिंग तक बढ़ गईं। आज वैज्ञानिक कमरे के तापमान और सामान्य दाब पर अतिचालकता की खोज कर रहे हैं; हाइड्रोजन आधारित कुछ यौगिकों में बहुत ज्यादा दबाव डालकर लगभग कमरे के तापमान तक अतिचालकता देखी भी जा चुकी है।

अतिचालक पदार्थों की प्रमुख विशेषताएँ

शून्य विद्युत प्रतिरोध (Zero Electrical Resistance)

सामान्य धातुओं (जैसे तांबा, एल्युमिनियम) में जब विद्युत धारा प्रवाहित होती है तो इलेक्ट्रॉनों की टकराहट से ऊर्जा का कुछ भाग ऊष्मा (Heat) के रूप में नष्ट हो जाता है। इसे ही विद्युत प्रतिरोध (Resistance) कहते हैं।
लेकिन जब कोई पदार्थ अतिचालक अवस्था (Superconducting State) में पहुँच जाता है तो उसमें विद्युत प्रतिरोध पूरी तरह समाप्त हो जाता है।

  • इसका अर्थ है कि धारा बिना किसी ऊर्जा क्षय के अनंत समय तक प्रवाहित हो सकती है।
  • उदाहरण के लिए, यदि अतिचालक तार में धारा प्रवाहित कर दी जाए तो यह वर्षों तक बिना बैटरी या स्रोत के भी चलती रहेगी।

मैस्नर प्रभाव (Meissner Effect)

जब कोई पदार्थ अतिचालक अवस्था में आता है, तो वह अपने भीतर चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field) को प्रवेश नहीं करने देता।

  • इस गुण के कारण पदार्थ चुंबकीय क्षेत्र को बाहर धकेल देता है
  • यही कारण है कि एक चुंबक अतिचालक पदार्थ के ऊपर तैर सकता है (Levitation Effect)।
  • यह प्रभाव मैग्लेव ट्रेन जैसी आधुनिक तकनीकों की नींव है।

क्रांतिक तापमान (Critical Temperature, Tc)

हर अतिचालक पदार्थ का एक विशिष्ट तापमान होता है जिसे क्रांतिक तापमान (Critical Temperature) कहते हैं।

  • इस तापमान से ऊपर पदार्थ सामान्य चालक (Conductor) की तरह व्यवहार करता है।
  • और जब तापमान इस सीमा से नीचे पहुँच जाता है, तो पदार्थ अतिचालक अवस्था में प्रवेश कर जाता है।
  • उदाहरण:
    • मरकरी (Hg) का Tc = 4.2 K
    • नायोबियम-टाइटेनियम (NbTi) का Tc = 9.3 K
    • YBCO (Yttrium Barium Copper Oxide) का Tc ≈ 90 K (हाई-टेम्परेचर सुपरकंडक्टर)

क्रांतिक चुंबकीय क्षेत्र (Critical Magnetic Field)

अतिचालक पदार्थ केवल एक निश्चित सीमा तक ही चुंबकीय क्षेत्र को बाहर धकेल सकता है।

  • इस सीमा को क्रांतिक चुंबकीय क्षेत्र (Critical Magnetic Field, Hc) कहते हैं।
  • यदि पदार्थ पर लगाया गया चुंबकीय क्षेत्र इस सीमा से अधिक हो जाए तो पदार्थ अपनी अतिचालक अवस्था खोकर सामान्य चालक बन जाता है।
  • यही कारण है कि सुपरकंडक्टर का उपयोग करते समय चुंबकीय क्षेत्र की सीमा का ध्यान रखना ज़रूरी होता है।

क्रांतिक धारा घनत्व (Critical Current Density, Jc)

अतिचालक पदार्थ में प्रवाहित की जाने वाली धारा की भी एक सीमा होती है।

  • जब धारा की घनत्व (Current Density) एक निश्चित मान से अधिक हो जाती है, तो पदार्थ अपनी अतिचालक अवस्था खो देता है।
  • इस सीमा को क्रांतिक धारा घनत्व (Critical Current Density) कहते हैं।
  • यह गुण अतिचालक तारों और केबलों की डिज़ाइन और क्षमता तय करने में महत्वपूर्ण है।

ऊर्जा की कोई हानि नहीं (Lossless Energy Transmission)

सामान्य विद्युत तारों से बिजली ले जाने पर प्रतिरोध के कारण बहुत ऊर्जा नष्ट हो जाती है।

  • लेकिन अतिचालक तारों में शून्य प्रतिरोध होने की वजह से ऊर्जा का क्षय बिल्कुल नहीं होता।
  • इसका मतलब है कि भविष्य में अतिचालक तारों से बिजली का 100% कुशल परिवहन संभव है।
  • यदि यह तकनीक बड़े पैमाने पर लागू हो जाए तो यह ऊर्जा क्षेत्र में क्रांति ला सकती है।

क्वांटम गुणधर्म (Quantum Properties)

अतिचालक पदार्थ केवल शून्य प्रतिरोध और मैस्नर प्रभाव तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि वे कुछ अद्भुत क्वांटम गुण भी प्रदर्शित करते हैं:

  • फ्लक्स क्वांटाइजेशन (Flux Quantization):
    चुंबकीय फ्लक्स (Magnetic Flux) केवल निश्चित क्वांटम इकाइयों (Quantum Units) में ही पाया जाता है। यह गुण केवल सुपरकंडक्टर में ही देखा जाता है।
  • जोसेफसन प्रभाव (Josephson Effect):
    यदि दो अतिचालक पदार्थों को एक पतली इन्सुलेटिंग परत से जोड़ा जाए तो बिना किसी वोल्टेज के भी उनमें धारा प्रवाहित हो सकती है।
    • यह क्वांटम टनलिंग (Quantum Tunneling) का परिणाम है।
    • इसका उपयोग SQUIDs (Superconducting Quantum Interference Devices) बनाने में होता है, जो अत्यंत संवेदनशील चुंबकीय सेंसर होते हैं।

ऊर्जा क्षेत्र में अतिचालक पदार्थों की भूमिका

बिजली का ट्रांसमिशन

  • आज बिजली का लगभग 8–10% हिस्सा ट्रांसमिशन के दौरान बर्बाद हो जाता है।
  • अतिचालक तारों से बिजली को लंबी दूरी तक बिना नुकसान पहुँचाया जा सकता है।

ऊर्जा भंडारण

  • SMES (Superconducting Magnetic Energy Storage) तकनीक बिजली को चुंबकीय क्षेत्र में संग्रहित करती है।
  • जरूरत पड़ने पर यह बिजली तुरंत उपलब्ध करा सकती है।

बिजली उत्पादन

  • अतिचालक जनरेटर और ट्रांसफॉर्मर हल्के, छोटे और अधिक कुशल होते हैं।
  • इनसे बिजली उत्पादन और वितरण की लागत कम हो सकती है।

तकनीकी क्षेत्र में उपयोग

चिकित्सा क्षेत्र में उपयोग

MRI मशीन

  • अति चालक चुम्बकों का उपयोग MRI (Magnetic Resonance Imaging) स्कैनर में होता है।
  • इससे उच्च गुणवत्ता वाली आंतरिक शरीर संरचना की छवियाँ प्राप्त होती हैं।

मस्तिष्क और तंत्रिका अध्ययन

  • SQUID (Superconducting Quantum Interference Device) का उपयोग मस्तिष्क की गतिविधि को मापने में किया जाता है।
  • इसका प्रयोग MEG (Magnetoencephalography) तकनीक में किया जाता है।

ऊर्जा और बिजली में उपयोग

बिजली का संचार

  • अति चालक तारों द्वारा बिजली बिना किसी नुकसान (Lossless Transmission) के लंबी दूरी तक पहुँचाई जा सकती है।
  • इससे बिजली की खपत कम होती है और ऊर्जा दक्षता बढ़ती है।

ऊर्जा भंडारण

  • अति चालक सामग्री का उपयोग उच्च क्षमता वाले सुपरकैपेसिटर और ऊर्जा भंडारण उपकरणों में किया जा रहा है।

परिवहन क्षेत्र में उपयोग

मैग्लेव ट्रेन (Maglev Train)

  • अति चालक चुम्बकों की सहायता से ट्रेनें पटरियों से ऊपर तैरती हैं।
  • इससे घर्षण कम होता है और गति 600 km/h से अधिक हो सकती है।

वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीक

कण त्वरक (Particle Accelerators)

  • CERN के LHC (Large Hadron Collider) जैसे बड़े कण त्वरकों में अति चालक चुम्बकों का प्रयोग किया जाता है।
  • यह कणों को अत्यधिक गति और सटीक दिशा में नियंत्रित करने में मदद करते हैं।

क्वांटम कंप्यूटर

  • अति चालक क्वांटम बिट्स (Qubits) बनाने में उपयोगी होते हैं।
  • इससे भविष्य में सुपरफास्ट कंप्यूटर संभव होंगे।

रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र में उपयोग

  • अति चालक का उपयोग नेविगेशन सिस्टम, रडार, और चुम्बकीय शील्डिंग में किया जाता है।
  • अंतरिक्ष यानों के लिए हल्के और शक्तिशाली ऊर्जा भंडारण उपकरण बनाने में भी इनका उपयोग किया जा रहा है।

वर्तमान चुनौतियाँ

अतिचालक (Superconductors) तकनीक और विज्ञान के क्षेत्र में अत्यंत उपयोगी होने के बावजूद कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इनकी सबसे बड़ी समस्या यह है कि ये अधिकतर केवल अत्यधिक निम्न तापमान पर ही काम करते हैं, जिसके लिए महंगे शीतलन तंत्र जैसे तरल हीलियम या तरल नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है। साथ ही, इनकी लागत अधिक है और उच्च तापमान पर काम करने वाले अतिचालक सामान्यतः सिरैमिक जैसे भंगुर पदार्थ होते हैं जिन्हें तार या केबल में बदलना कठिन होता है। इसके अलावा, ये उच्च चुंबकीय क्षेत्रों में अपनी विशेषता खो देते हैं, जिससे MRI मशीन, मैगलेव ट्रेन और फ्यूज़न रिएक्टर जैसे क्षेत्रों में सीमाएँ उत्पन्न होती हैं। बड़े पैमाने पर इनका उत्पादन तकनीकी रूप से जटिल है, साथ ही AC धारा के प्रयोग में ऊर्जा हानियाँ और लंबे समय तक स्थिरता बनाए रखने की कठिनाई भी सामने आती है। इसलिए, वर्तमान में सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं—उच्च तापमान पर कार्यक्षमता, लागत में कमी, टिकाऊपन और बड़े पैमाने पर उत्पादन, जिनके समाधान हेतु वैज्ञानिक लगातार नए पदार्थों और कमरे के तापमान पर काम करने वाले अतिचालकों पर शोध कर रहे हैं।

भविष्य की संभावनाएँ

अतिचालक (Superconductors) की भविष्य की संभावना अत्यंत उज्ज्वल है क्योंकि यदि वर्तमान चुनौतियों को पार किया जाता है तो यह तकनीक ऊर्जा, परिवहन, चिकित्सा और अंतरिक्ष अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है। भविष्य में कमरे के तापमान पर कार्य करने वाले अतिचालक (Room-Temperature Superconductors) विकसित होने की संभावना है, जिससे महंगे शीतलन उपकरणों की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी और इनका उपयोग बड़े पैमाने पर संभव हो सकेगा। ऊर्जा क्षेत्र में अतिचालक बिजली के नुकसान को पूरी तरह खत्म कर सकते हैं, जिससे स्मार्ट ग्रिड और लंबी दूरी तक बिजली संचरण अधिक कुशल हो जाएगा। परिवहन के क्षेत्र में मैगलेव ट्रेन और हाइपरलूप जैसी प्रणालियाँ तेज़, सुरक्षित और ऊर्जा-कुशल बनेंगी। चिकित्सा में MRI मशीनें अधिक सस्ती और शक्तिशाली हो सकती हैं, जबकि अंतरिक्ष व कण-त्वरक (Particle Accelerators) जैसी उच्च-तकनीकी परियोजनाओं को भी नई दिशा मिलेगी। इसके अतिरिक्त, क्वांटम कंप्यूटिंग और सुपरफास्ट इलेक्ट्रॉनिक्स में अतिचालक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इस प्रकार, यदि शोधकर्ता कमरे के तापमान पर स्थिर और सस्ते अतिचालक विकसित कर लेते हैं, तो यह 21वीं सदी की सबसे बड़ी तकनीकी क्रांतियों में से एक होगी।

निष्कर्ष

अतिचालक पदार्थ आज केवल वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं और विशेष उद्योगों तक सीमित हैं, लेकिन आने वाला कल इन्हीं पर आधारित होगा।

अगर रूम-टेम्परेचर सुपरकंडक्टर की खोज हो जाती है, तो यह ऊर्जा और तकनीक की सबसे बड़ी क्रांति साबित होगी।
बिजली का नुकसान खत्म हो जाएगा, ट्रेनों और गाड़ियों की रफ्तार कई गुना बढ़ जाएगी, बीमारियों का इलाज आसान होगा और कंप्यूटिंग शक्ति अकल्पनीय स्तर तक पहुँच जाएगी।