जल का अणु सूत्र H2O है। पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले पदार्थों में सर्वाधिक बाहुल्य जल का है। पृथ्वी तल का 70 प्रतिशत भाग जल में डूबा रहता है। जल पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एकमात्र अकार्बनिक तरल पदार्थ है। पृथ्वी की सतह पर पाया जाने वाले अधिकतर जल समुद्र और महासागरों में है। यह जल लवणीय है।अलवणीय जल बर्फ के रूप में ध्रुवों पर, बर्फ से ढके पहाड़ों पर, भूमिगत रूप में तथा नदियों, तालाबों में झीलों में पाया जाता है। जल की कुछ मात्रा जलवाष्प के रूप में वायुमंडल में पाई जाती है।
जल के स्रोत
प्रकृति में जल प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। जल का स्रोत समुद्र, नदी, झील, हैण्डपम्प, कुआँ, बावड़ी या टाँका आदि है। समुद्र व महासागर का जल नमक के कारण खारा होता है परन्तु यह जल पीने योग्य नहीं है। अन्य स्रोतों जैसे-बावड़ी, झील, नदी, झरनों, ट्यूबवेल, हैण्डपम्प से प्राप्त जल पीने योग्य है, परन्तु इसकी मात्रा पृथ्वी पर बहुत कम है।
ज़ल के भौतिक एवं रासायनिक गुण
शुद्ध जल रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन एवं पारदर्शक द्रव होता है। जल का क्वथनांक 100°C तथा जल का हिमांक 0°C होता है। जल जब ठण्डा होने पर बर्फ (ठोस अवस्था) बनाता है तो बर्फ का घनत्व कम हो जाता है।
जल संग्रहण क्या है?
पृथ्वी पर उपलब्ध जल का कुछ भाग पौधों, जन्तुओं तथा मनुष्य द्वारा प्रयुक्त होता है। जल का अधिकांश भाग समुद्री जल के रूप में होता है। जिसका सीधा उपयोग करना संभव नहीं है। वर्षा की कमी से भौम (भूमि) जल का स्तर अत्यधिक नीचे चला जाता है। जनसंख्या वृद्धि, वर्षा का असंतुलन, उद्योगों में अत्यधिक जल का उपयोग, जल का अपव्यय आदि के कारण पीने योग्य जल की मात्रा में निरन्तर कमी होती जा रही है।
जल की कमी के कई कारण हो सकते हैं। अतः वर्षा के जल को एकत्रित कर भंडारण करना आवश्यक है। जिससे हमारी जल की आवश्यकता की पूर्ति हो सके। अतः वर्षा के जल को एकत्रित कर भण्डारण करने की प्रक्रिया को जल संग्रहण कहते हैं।
जल-संग्रहण की तकनीक
मकान की छतों पर एकत्रित वर्षा जल को पाईप की सहायता से जमीन में बने गड्ढे में ले जाया जाता है। यह जल धीरे-धीरे मिट्टी में रिसाव से भौम जल का स्तर बढ़ाता है।
जल संग्रहण के कई अलग-अलग तरीके हैं, जिनमें शामिल हैं:
- वर्षा जल संचयन: यह वर्षा जल को छतों, तालाबों, या अन्य संरचनाओं से इकट्ठा करने की प्रक्रिया है। इसे घरेलू उपयोग, सिंचाई, या भूजल पुनर्भरण के लिए उपयोग किया जा सकता है।
- भूजल संचयन: यह भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए जल को भूमिगत में रिसने देने की प्रक्रिया है। इसे तालाबों, गड्ढों, या अन्य संरचनाओं का निर्माण करके किया जा सकता है।
- सतही जल संचयन: यह सतही जल, जैसे नदियों, झीलों, या तालाबों से जल को इकट्ठा करने की प्रक्रिया है। इसे सिंचाई, उद्योग, या अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जा सकता है।
जल स्रोत से जल वाष्पीकरण द्वारा वाष्प के रूप में ऊपर उठता है। जल वाष्प के संघनन से बादल बनते हैं तथा वर्षण द्वारा जल वर्षा के रूप में पुनः जल स्रोतों में आता है। इस चक्र को जल चक्र कहते है।
जल चक्र पृथ्वी पर पानी के एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होने और एक भंडार से दूसरे भंडार या एक स्थान से दूसरे स्थान को गति करने की चक्रीय प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में कुल जल की मात्रा का क्षय नहीं होता, बस रूप परिवर्तन और स्थान परिवर्तन होता है।
जल चक्र के चार मुख्य चरण हैं:
- वाष्पीकरण – सूर्य की गर्मी से पानी गर्म होकर वाष्प में बदल जाता है। यह वाष्प वायुमंडल में ऊपर उठती है।
- उपरिक्षेपण – वायुमंडल में ऊपर उठती हुई वाष्प ठंडी होकर संघनित हो जाती है और बादल बन जाते हैं।
- वर्षा – बादल से वर्षा, हिमपात या ओलावृष्टि होती है।
- अन्तःस्रवण – वर्षा का कुछ पानी रिस कर भूमि में चला जाता है और भूजल का निर्माण करता है।
- भापीकरण – भूमि और पौधों से पानी वाष्प में बदल जाता है और वायुमंडल में वापस चला जाता है।
जल चक्र पृथ्वी के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह:
- पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। पौधे, जानवर और मनुष्य सभी पानी के बिना जीवित नहीं रह सकते।
- पृथ्वी की जलवायु को नियंत्रित करता है। वाष्पीकरण पृथ्वी को ठंडा रखता है, और वर्षा जलवायु को संतुलित करती है।
- मौसम को नियंत्रित करता है। वर्षा, हिमपात और ओलावृष्टि सभी मौसम के पैटर्न को प्रभावित करती हैं।