पर्यावरण प्रदूषण (Environment pollution): कारण, प्रभाव और तकनीकी समाधान

प्रकृति में उपस्थित जैविक घटक जैसे मनुष्य, पौधे, प्राणी, सूक्ष्म जीव तथा अजैविक घटक जैसे वायु, जल, मिट्टी, प्रकाश आदि मिलकर पर्यावरण का निर्माण करते है।

पर्यावरण का अर्थ

पर्यावरण के लिये अंग्रेजी में समानार्थी शब्द Environment है। Environment शब्द फ्रेंच भाषा के शब्द ‘Environ’ से बना है, जिसका अर्थ है “surroundings” अर्थात् हमारे आस-पास का क्षेत्र।
पर्यावरण शब्द संस्कृत भाषा के ‘परि’ उपसर्ग और ‘आवरण’ से मिलकर बना है। परि का अर्थ चारों ओर होता है अत: पर्यावरण (environment) का अर्थ हमारे चारों ओर का आवरण है।
“Surroundings” में हम जैविक घटक जैसे मनुष्य, पौधे, प्राणी, सूक्ष्म जीव तथा अजैविक घटक में हम वायु, जल, मिट्टी, प्रकाश आदि को शामिल करते है।

पर्यावरण एवं जीव-जगत में अंर्तसंबंध है क्योंकि ये एक दूसरे को प्रभावित करते है अत: शुद्ध पर्यावरण इनके लिये अति आवश्यक है।
पर्यावरण (संरक्षण)अधिनियम, 1986 के अनुसार, पर्यावरण किसी जीव के चारों ओर घिरी भौतिक एवं जैविक दशाओं एवं उनके साथ अंत:क्रिया को सम्मिलित करता है।

पर्यावरण के घटक

पर्यावरण के संघटकों को 3 प्रमुख भागों में विभक्त किया जाता है-

  • भौतिक या अजैविक संघटकः इसके अंतर्गत स्थल, वायु, जल आदि सम्मिलित होते हैं।
  • जैविक संघटकः इसके अंतर्गत पादप, मनुष्य समेत जंतु तथा सूक्ष्मजीव सम्मिलित होते हैं
  • ऊर्जा संघटकः सौर ऊर्जा एवं भूतापीय ऊर्जा को ऊर्जा संघटक में सम्मिलित करते है।

पर्यावरण के ये घटक साथ कार्य करते हैं, आपस में समन्वय रखते हैं एवं एक दूसरे के प्रभाव को रूपांतरित भी करते हैं।

पर्यावरण (Environment) के प्रमुख क्षेत्र

पर्यावरण एक अत्यंत व्यापक विषय है। इसके प्रमुख क्षेत्र निम्न है-

  • प्रकृति एवं प्राकृतिक स्रोतों का संरक्षण ।
  • पर्यावरणीय प्रदूषण को नियंत्रित करना
  • मानव जनसंख्या को नियंत्रित करना।
  • प्रदूषण रहित नवीकरणीय ऊर्जा तंत्र (Renewable energy system) का विकास करना।

पर्यावरण (environment) का महत्व

पर्यावरण पृथ्वी पर उपस्थित सभी जीवों से संबंधित है तथा यह सभी के लिये महत्वपूर्ण है।
इस पृथ्वी पर उपस्थित सभी जीव-जन्तु, पेड़-पौधे, मनुष्य आदि पर्यावरणीय कारकों जैसे ग्लोबल वार्मिंग (global warming), ओजोन परत का अपक्षय (depletion of ozone layer), जैवविविधता का हास (loss of biodiversity), अम्ल वर्षा (acid rain) से प्रभावित है।
जनसंख्या वृद्धि, औद्योगीकरण, वन विनाश, पर्यावरण प्रदूषण के कारण पर्यावरण अध्ययन का अत्यधिक महत्व है।
पर्यावरण अध्ययन से हम सुरक्षित, स्वच्छ, स्वस्थ एवं प्राकृतिक ecosystem स्थापित कर सकते है।

FAQ

पर्यावरण से आप क्या समझते हैं?

प्रकृति में उपस्थित जैविक घटक जैसे मनुष्य, पौधे, प्राणी, सूक्ष्म जीव तथा अजैविक घटक जैसे वायु, जल, मिट्टी, प्रकाश आदि मिलकर पर्यावरण का निर्माण करते है।

पर्यावरण के प्रमुख घटक कौन-कौन से हैं?

पर्यावरण के 3 घटक है। जैविक घटक, अजैविक घटक एवं ऊर्जा घटक।

पर्यावरण में अवांछित एवं अनुपयोगी पदार्थों के मिलने या उपयोगी तत्वों की कमी से इसकी गुणवत्ता में ह्रास हो जाता है। यही पर्यावरण प्रदूषण कहलाता है।
पर्यावरण प्रदूषण के फलस्वरूप वायु, जल, मिट्टी के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक गुणों में परिवर्तन हो जाते है। यह परिवर्तन पारिस्थितिक तंत्र एवं सभी जीव धारियों के लिये हानिकारक है। पर्यावरण प्रदूषण के फलस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग, ओजोन परत का नष्ट होना, असमय वर्षा होना, समुद्र के जल स्तर का बढ़ना, मरुस्थल का विस्तार होना जैसी कई समस्याएं उत्पन्न हुई है।

प्रदूषण के मुख्य प्रकार

प्रदूषण के प्रकार निम्न है-

  • जल प्रदूषण
  • वायु प्रदूषण
  • मृदा प्रदूषण
  • ध्वनि प्रदूषण

जल प्रदूषण

जल में अवांछित पदार्थों जैसे विषैले रसायन, रेडियोऐक्टिव पदार्थ, कचरा, प्लास्टिक इत्यादि मिलने से उसके रासायनिक एवं भौतिक गुणों में परिवर्तन आ जाते है एवं उसकी गुणवत्ता में ह्रास हो जाता है। इसे जल प्रदूषण कहते है।

जल प्रदूषण के कारण तालाबों, झीलों व नदियों का जल दूषित हो जाता है। दूषित जल से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। प्रदूषित जल पीने से कई बीमारियां उत्पन्न हो जाती है। जल प्रदूषण वर्तमान में एक गंभीर समस्या बनी हुई है।

जल प्रदूषण के कारण

जल प्रदूषण प्राकृतिक एवं मानवीय कारणों से हो सकता है। प्राकृतिक कारणो में भू-क्षरण, खनिज पदार्थ, पेड़-पौधों के अवशेष व पत्तियां, ह्युमस तथा जीव-जंतुओं के अपशिष्ट का जल के प्राकृतिक स्रोतों में मिलना है।

मानवीय कारकों में औद्योगिक बहिस्राव:, घरेलू बहिस्राव:, वाहित मल ( sewage ) एवं कृषि बहिस्राव: प्रमुखतया आते है।

औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले जल में हानिकारक विषैले रसायन होते है। इनको नदियों, झीलों, तालाबों में छोड़ने पर ये जल को अत्यधिक प्रदूषित करते है।

कीटनाशक जैसे DDT, BHC भी जल को प्रदूषित करते है।

कृषि उर्वरक के रुप में नाइट्रोजन एवं फॅास्फोरस के यौगिकों का उपयोग बहुतायत में किया जाता है। जब ये नदी, तालाबों में मिल जाते है तो ये जल में उपस्थित शैवालों की अत्यधिक वृद्धि करते है। इन शैवालों की मृत्यु के बाद ये जीवाणुओं का भोजन बनते है। ये जीवाणु जल में उपस्थित आक्सीजन का अत्यधिक मात्रा में उपयोग करते है। इससे जल में आक्सीजन की कमी हो जाती है एवं जल प्रदूषित हो जाता है।

औद्योगिक इकाइयों जैसे तेल रिफाइनरी, वस्त्र एवं चीनी मिलें, कागज एवं प्लास्टिक फैक्ट्रियों से उत्सर्जित रसायनों में आर्सेनिक, लेड तथा फ्लुओराइड होते है जिससे जल प्रदूषित होता है।

वाहित मल ( sewage ), साबुन एवं डिटर्जेंट मिले जल को तालाबों, झीलों में छोड़ने पर जल प्रदूषित होता है।

जब कोई समुद्री जहाज दुर्घटनाग्रस्त होता है तो उसमें उपस्थित खनिज तेल समुद्र की सतह पर फैल
जाता है जो जल प्रदूषण का कारण बनता है।

रेडियोऐक्टिव पदार्थ, प्लास्टिक, कचरा इत्यादि समुद्र में छोड़ने से भी समुद्री जल अत्यधिक मात्रा में प्रदूषित हो गया है।

जल प्रदूषण के प्रभाव

जल प्रदूषण के कारण मानव स्वास्थ्य पर अति विपरीत असर हुआ है।

  • जल प्रदूषण का व्यापक प्रभाव सन् 1956 ई. में जापान के मिनेमाटा शहर के लोगों में देखा गया। प्रदूषित जल के कारण उस क्षेत्र के लोग मिनेमाटा रोग से ग्रसित हो गए। इस शहर के लोग मिनेमाटा खाड़ी में पायी जाने वाली मछलियों का उपयोग भोजन में करते थे। इस खाड़ी में औद्योगिक बहिस्राव: के रुप में हानिकारक मिथाइल मरक्यूरी ( methyl mercury ) उपस्थित था। इस दूषित जल में उपस्थित मछलियों में भी मिथाइल मरक्यूरी ( methyl mercury ) का अंश पाया गया जो मिनेमाटा रोग का कारण बना। मिनेमाटा रोग में तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है। इससे देखने, बोलने व सुनने की क्षमता प्रभावित होती है तथा मांसपेशियां कमजोर हो जाती है।
  • कभी-कभी अनुपचारित वाहित मल सीधे ही नदियों में प्रवाहित कर दिया जाता है। वाहित मल द्वारा संदूषित जल में जीवाणु, वायरस, कवक तथा परजीवी हो सकते है। जिनसे हैजा, मियादी बुखार तथा पीलिया जैसे रोग हो सकते है।
  • साबुन एवं डिटर्जेंट युक्त जल पीने से कृमि रोग एवं पेट से संबंधित रोग हो जाते है।
  • सीवेज युक्त जल उल्टी, दस्त, पेचिस एवं आंत्र रोग का कारण बनते है।
  • फ्लुओराइड युक्त जल पीने से हड्डियां कमजोर हो जाती है तथा दाँतों का फ्लोरोसिस रोग हो जाता है। फ्लुओराइड की समस्या राजस्थान के नागौर एवं अजमेर जिले में अत्यंत भंयकर रुप लिये हुए है।
  • नाइट्रोजन युक्त जल पीने से ये हीमोग्लोबिन के साथ क्रिया करके मिथेमोग्लोबिन बनाता है। ये शरीर में रुधिर संचरण को कम करता है। इसे ब्लू बेबी सिंड्रोम कहते है।
  • जल में कैडमियम की उपस्थित इटाई-इटाई रोग का कारण बनता है।
  • ऐस्केरिस एवं नारु के कृमि दूषित जल पीने से शरीर में प्रवेश कर जाते है।

मानव स्वास्थ्य के अलावा अन्य प्राणियों एवं पारिस्थितिकी तंत्र पर भी जल प्रदूषण का अत्यंत दुष्प्रभाव हुआ है।

  • जल प्रदूषण से मृदा में उपस्थित उपयोगी जीवाणु जैसे ऐजोला, ऐजोटोबेक्टर इत्यादि प्रभावित होते है।
  • जल में कार्बनिक पदार्थों ( जैसे मल-मूत्र, पेड़-पौधों की पत्तियां ) की उपस्थिति जल की उत्पादकता बढ़ा देती है। जिससे जलीय पौधे, शैवाल अधिक वृद्धि करते है और जल की सतह को ढ़क लेते है जिससे जीवों के लिये आक्सीजन की कमी हो जाती है।
  • झीलों, तालाबों, समुद्रों के तलहटी में प्रदूषक तत्वों के जमा होने से जलीय पौधे नष्ट हो रहे है तथा जलीय खरपतवार में वृद्धि हो रही है।

जल प्रदूषण को कम करने के उपाय

वाहित जल को उपचारित करके ही नदी, नालों में छोड़ने चाहिए।

औद्योगिक इकाइयों में जल परिष्करण संयंत्र लगाने चाहिए। दूषित जल को स्वच्छ करके इसका पुन: उपयोग करना चाहिए।

कृषि कार्य के लिये रासायनिक उर्वरक का उपयोग कम किया जाना चाहिए। इनके स्थान पर जैविक खाद का उपयोग करना चाहिए।

जल प्रदूषण को कम करने वाले पौधे जैसे जलकुंभी को जलाशयों, तालाबों, झीलों में उगाना चाहिए। ये प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के अंतर्गत जल को शुद्ध करती है।

शैवाल प्रस्फुटन क्या है?

वाहित मल, कृषि में प्रयुक्त उर्वरक एवं अन्य अपशिष्ट पदार्थों में नाइट्रेट एवं फास्फेट युक्त रसायन प्रचुर मात्रा में उपस्थित होते है। ये रसायन युक्त अपशिष्ट जलाशयों व तालाबों में मिल जाते है तो ये शैवालों के लिए पोषक का कार्य करते है। जिससे इन जलाशयों में शैवालों की वृद्धि तेजी से होती है। शैवालों की इस अत्यधिक वृद्धि को शैवाल ब्लूम कहते है। ये शैवाल ऑक्सीजन का अत्यधिक मात्रा में उपयोग करते है। इसके अतिरिक्त मृत शैवालों का जीवाणु द्वारा अपघटन भी होता रहता है जिससे जल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। जल में ऑक्सीजन की कमी से जलीय जीव मरने लगते है।