परिचय
विद्युत धारा हमारे दैनिक जीवन और आधुनिक तकनीकी जगत की नींव है। पंखा चलाना हो, मोबाइल चार्ज करना हो या विशाल उद्योगों में मशीनें चलानी हों, हर जगह विद्युत धारा का उपयोग होता है। लेकिन वास्तव में विद्युत धारा है क्या, यह कैसे उत्पन्न होती है और इसका वैज्ञानिक महत्व क्या है – आइए इसे विस्तार से समझते हैं।
किसी चालक में आवेशों के प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते है। जब किसी चालक में समय t में आवेश Q प्रवाहित होते है तो उसमें प्रवाहित धारा को निम्न प्रकार से व्यक्त करते है- $$I = Q/t $$
विद्युत धारा का SI मात्रक ऐम्पियर है। विद्युत धारा एक अदिश राशि है।
धारा घनत्व
किसी चालक के एकांक काट क्षेत्रफल के अभिलंबवत बहने वाली विद्युत धारा को धारा घनत्व कहते है । किसी चालक के काट क्षेत्रफल A के अभिलंबवत बहने वाली विद्युत धारा I को धारा घनत्व J के रुप में निम्न प्रकार से व्यक्त करते है-। $$ J = I/A $$
धारा घनत्व का A/m2 है। धारा घनत्व एक सदिश राशि है।
बाह्य बल द्वारा किसी एकांक धनावेश को अनंत से विद्युत क्षेत्र में स्थित किसी बिन्दु तक लाने में किया गया कार्य उस बिन्दु पर विद्युत विभवnकहलाता है। आवेश q0 को अनंत से विद्युत क्षेत्र में स्थित बिन्दु B तक लाने में किया गया कार्य W∞B हो तो बिन्दु B पर विद्युत विभव निम्नानुसार होता है, $$V_B = \frac{W_{\infty B}}{q_0}$$
विद्युत विभवांतर
किसी धारावाही विद्युत परिपथ के दो बिंदुओं के बीच विद्युत विभवांतर को उस कार्य द्वारा परिभाषित किया जाता है जो एकांक आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक लाने में किया जाता है।
किसी चालक में विद्युत आवेशों के प्रवाह में उत्पन्न बाधा को विद्युत प्रतिरोध कहते है। प्रतिरोध पदार्थ का एक गुणधर्म है जो किसी चालक में विद्युत धारा अथवा इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह का विरोध करता है। विद्युत प्रतिरोध का SI मात्रक ओम है। इसे प्रतीक Ω से प्रदर्शित किया जाता है।
प्रतिरोध की निर्भरता (Dependence of resistance)
किसी चालक का प्रतिरोध निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता –
- चालक की लंबाई पर
- चालक के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल पर
- चालक के पदार्थ की प्रकृति पर
किसी चालक का प्रतिरोध उसकी लंबाई (L) के अनुक्रमानुपाती तथा उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल (A) के व्युत्क्रमानुपाती होता है। अर्थात $$R = \frac{ρL}{A}$$ यहाँ ρ आनुपातिकता स्थिरांक है जिसे चालक के पदार्थ की वैद्युत प्रतिरोधकता कहते है।
प्रतिरोधकों का संयोजन
प्रतिरोधकों का श्रेणीक्रम संयोजन (Series combination)
यदि R1, R2, R3 प्रतिरोध के तीन प्रतिरोधक श्रेणीक्रम में जुड़े हो तो संयोजन का तुल्य प्रतिरोध
$$ R = R_1 + R_2 + R_3$$
यदि R1, R2…. Rn प्रतिरोध के n प्रतिरोधक श्रेणीक्रम में जुड़े हो तो संयोजन का तुल्य प्रतिरोध
$$ R = R_1 + R_2 +…..+ R_n$$
प्रतिरोधकों का समांतर क्रम संयोजन (parallel combination)
यदि R1, R2, R3 प्रतिरोध के तीन प्रतिरोधक समांतर क्रम में जुड़े हो तो संयोजन का तुल्य प्रतिरोध
$$ \frac{1}{R}= \frac{1}{R_1} + \frac{1}{R_2} + \frac{1}{R_3}$$
यदि R1, R2…. Rn प्रतिरोध के n प्रतिरोधक समांतर क्रम में जुड़े हो तो संयोजन का तुल्य प्रतिरोध
$$ \frac{1}{R}= \frac{1}{R_1} + \frac{1}{R_2} +….+ \frac{1}{R_n}$$
वैद्युत प्रतिरोधकता
किसी चालक का प्रतिरोध उसकी लंबाई (L) के अनुक्रमानुपाती तथा उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल (A) के व्युत्क्रमानुपाती होता है। अर्थात $$R = \frac{ρL}{A}$$ यहाँ ρ आनुपातिकता स्थिरांक है जिसे चालक के पदार्थ की वैद्युत प्रतिरोधकता या विशिष्ट प्रतिरोध कहते है। वैद्युत प्रतिरोधकता का SI मात्रक ओम-मीटर है। इसे प्रतीक Ωm से प्रदर्शित किया जाता है। प्रतिरोधकता को इस प्रकार लिखा जाता है $$ρ = \frac{RA}{L}$$ प्रतिरोधकता का मान पदार्थ की चालकता के व्युत्क्रम मान के बराबर होता है $$\sigma = \frac{1}{rho}$$ जहाँ (sigma)चालकता है।
वैद्युत प्रतिरोधकता चालक की लम्बाई व अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल पर निर्भर नहीं करती हैं। यह पदार्थ की प्रकृति एवं ताप पर निर्भर करती है। धातुओं तथा मिश्रधातुओं की प्रतिरोधकता अत्यन्त कम होतीहै, जिसका परिसर 10-8Ωm से 10-6Ωm है। रबड़ तथा काँच जैसे विद्युतरोधी पदार्थो की प्रतिरोधकता 1012Ωm से 1017Ωm कोटि की होती है।
| Material | Resistivity (Ω-m) |
|---|---|
| Silver | 1.59e-8 |
| Copper | 1.72e-8 |
| Gold | 2.22e-8 |
| Aluminium | 2.65e-8 |
| Iron | 9.71e-8 |
विद्युत चालकता
चालकता का मान पदार्थ की प्रतिरोधकता के व्युत्क्रम मान के बराबर होता है अर्थात $$\sigma = \frac{1}{\rho}$$ चालकता पदार्थ की प्रकृति तथा इसके ताप पर निर्भर करती है। चालकता को निम्न प्रकार से भी व्यक्त किया जाता है $$\sigma = \frac{ne^2\tau}{m}$$ जहाँ -e = इलेक्ट्रॉन का आवेश m = इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान n = चालक में प्रति एकांक आयतन मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या (tau) = विश्रांति काल
कार्बन प्रतिरोध तथा वर्ण कोड
इलेक्ट्रॉनिक परिपथों में प्रायः अतिउच्च प्रतिरोधों की आवश्यकता होती है। इन्हें धातु चालकों से बनाना असुविधाजनक है क्योंकि इसके लिए तार की बहुत अधिक लम्बाई की आवश्यकता होगी। ऐसे प्रतिरोधों को अर्धचालक पदार्थों से बनाया जाता है। सबसे उचित अर्धचालक पदार्थ कार्बन है अतः इसे कार्बन प्रतिरोध कहते हैं।कार्बन प्रतिरोध बहुत छोटे होते हैं तथा काफी सस्ते होते हैं।
कार्बन प्रतिरोधों के वर्ण कोड
| Color | Digit | Multiplier | Tolerance |
|---|---|---|---|
| Black | 0 | 1 | ±20{} |
| Brown | 1 | 10 | ±1{} |
| Red | 2 | 100 | ±2{} |
| Orange | 3 | 1000 | ±3{} |
| Yellow | 4 | 10,000 | ±4{} |
| Green | 5 | 100,000 | ±0.5{} |
| Blue | 6 | 1,000,000 | ±0.25{} |
| Violet | 7 | 10,000,000 | ±0.1{} |
| Gray | 8 | 100,000,000 | ±0.05{} |
| White | 9 | 1,000,000,000 | ±0.01{} |
कार्बन प्रतिरोधों के मानों को प्रदर्शित करने के लिए वर्ण कोड का प्रयोग किया जाता है। प्रतिरोधक पदार्थ पर विभिन्न रंग की चार वलयाकार पट्टियां होती हैं। पहली तीन पट्टियाँ a, b, c प्रतिरोध के मान को व्यक्त करती हैं तथा चौथी पट्टी d विश्वशनीयता के प्रतिशत को व्यक्त करती है।
प्रथम पट्टी a का रंग ओम में प्रतिरोध के प्रथम सार्थक अंक, द्वितीय पट्टी b ओम में प्रतिरोध के दूसरे सार्थक अंक, तीसरी पट्टी c दस की घात को व्यक्त करती है।
कार्बन प्रतिरोध R का मान निम्न व्यंजक से प्राप्त करते हैं
समविभव पृष्ठ
किसी विद्युत क्षेत्र में वह पृष्ठ जिस पर स्थित समस्त बिन्दुओं पर विभव बराबर हो पृष्ठ समविभव कहलाता है। अर्थात् समविभव पृष्ठ पर किन्ही दो बिन्दुओं के मध्य विभवान्तर शून्य होता है। इस कारण आवेश को समविभव पृष्ठ के एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में कार्य नहीं करना पड़ता है, चूंकि कार्य शून्य तब ही होता है जब विस्थापन की दिशा लंबवत् हो, अतः समविभव पृष्ठ के प्रत्येक के बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र या बल की दिशा, पृष्ठ के होती है।
ओम का नियम
जब किसी चालक में I धारा प्रवाहित होती है तो चालक के सिरों के मध्य उत्पन्न विभवांतर उसमें प्रवाहित धारा के समानुपाती होता है। अर्थात V α I
$$ V = RI $$
जहां R एक समानुपाती नियतांक है जिसे चालक का प्रतिरोध कहते है।
अपवाह वेग
जब किसी चालक पर बाह्य विद्युत क्षेत्र आरोपित किया जाता है तो चालक में उपस्थित मुक्त इलेक्ट्रॉनों पर विद्युत क्षेत्र की दिशा के विपरीत विद्युत बल लगता है। जिसके कारण ये मुक्त इलेक्ट्रॉन विद्युत क्षेत्र की दिशा के विपरीत गति करने लगते है। इस प्रकार मुक्त इलेक्ट्रॉनों द्वारा प्राप्त वेग को अपवाह वेग कहते है।
किसी चालक पर विद्युत क्षेत्र (E) आरोपित किया
जाता है तो इलेक्ट्रॉन द्वारा प्राप्त अपवाह वेग \(\vec{v_d}\)
को निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया जाता है,
$$\vec{v_d} = \frac{-e\vec{E}\tau}{m}$$
जहाँ
-e = इलेक्ट्रॉन का आवेश
m = इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान
\(\tau\) = विश्रांति काल
विद्युत गतिशीलता
प्रति एकांक विद्युत क्षेत्र के अपवाह वेग के परिमाणको विद्युत गतिशीलता कहते हैं। विद्युत गतिशीलता को संकेताक्षर \(\mu\) से प्रदर्शित किया जाता है।अतः$$\mu= \frac{|\vec{v_d}|}{E}$$जहाँ \(\vec{v_d}\) अपवाह वेग तथा (E) विद्युत क्षेत्र है।गतिशीलता का SI मात्रक m2Vs-1 है और इसके प्रायोगिक मात्रक cm2Vs-1 है। अपवाह वेग \(v_d = \frac{eE\tau}{m}\) का उपयोग करने पर विद्युत गतिशीलता निम्नवत प्राप्त होती है,$$\mu = \frac{e\tau}{m}$$जहाँ \(\tau\) इलेक्ट्रॉन के लिए संघट्टन का औसत समय है। विद्युत गतिशीलता का मान पदार्थ की प्रकृति एवं ताप पर निर्भर करता है। विद्युत गतिशीलता धनात्मक होती है।
विद्युत मोटर
विद्युत मोटर (electric motor) एक विद्युतयांत्रिक मशीन है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलती है; अर्थात इसे उपयुक्त विद्युत स्रोत से जोड़ने पर यह घूमने लगती है जिससे इससे जुड़ी मशीन या यन्त्र भी घूमने लगती है।
एक महत्वपूर्ण अवयव के रूप में विद्युत मोटर का उपयोग विद्युत पंखों, रेफ्रिजरेटरों, विद्युत मिश्रकों, वाशिंग मशीनों, कंप्यूटरों, MP 3 प्लेयरों आदि में किया जाता है।
विद्युत स्विच
विद्युत स्विच एक युक्ति होती है जो किसी विद्युत परिपथ में बिजली धारा के प्रवाह को आरंभ करती है या रोकती है। स्विच में चालू (ऑन) तथा बंद (ऑफ) की दो स्थितियां होती हैं। चालू (ऑन) की स्थिति में परिपथ में विद्युत धारा का प्रवाह होता है जबकि ऑफ स्थिति में विद्युत धारा का प्रवाह नहीं होता है।
विद्युत परिपथ
विद्युत परिपथ एक सेल (अथवा एक बैटरी), एक प्लग कुंजी, एक वैद्युत अवयव (अथवा अवयवों) तथा संयोजी तारों से मिलकर बनता है। विद्युत परिपथों का प्रायः ऐसा व्यवस्था आरेख खींचना एक सेल सुविधाजनक होता है जिसमें परिपथ के विभिन्न अवयवों को सुविधाजनक प्रतीकों द्वारा निरूपित किया जाता है। सारणी 1 में सामान्य उपयोग में आने वाले कुछ वैद्युत अवयवों को निरूपित करने वाले रूढ़ प्रतीक दिए गए हैं।
सारणी 1 : विद्युत परिपथों में सामान्यतः उपयोग होने वाले कुछ अवयवों के प्र
| अवयव | प्रतीक |
| प्रतिरोध |
विद्युत सेल के टर्मिनलों को तार द्वारा बल्ब के टर्मिनलों से जोड़ने पर एक सरल विद्युत परिपथ प्राप्त होता है। विद्युत परिपथ, विद्युत सेल के दो टर्मिनलों के मध्य विद्युत प्रवाह को दर्शाता है। बल्ब केवल तभी जलता है जब परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित होती है।
विद्युत धारा का प्रवाह सेल के धन सिरे से ऋण सिरे की ओर होता है। कई बार परिपथ पूरा होने पर भी बल्ब नहीं जलता है। इसका क्या कारण है कि जब परिपथ संयोजन पूर्ण नहीं है या तार सही जुड़ा हुआ नहीं है अथवा बल्ब भी खराब हो। इसे हम बल्ब का फ्यूज होना भी कहते हैं।
किरचॉफ का नियम
जटिल विद्युत परिपथ के विश्लेषण के लिए किरचॉफ ने दो नियम प्रतिपादित किए, जो कि निम्नवत् –
किरचॉफ का प्रथम नियम या संधि नियम (Kirchhoff’s first law)
इस नियम के अनुसार किसी संधि पर संधि से प्रवेश करने वाली विद्युत धाराओं का योग इस संधि से निकलने वाली धाराओं के योग के बराबर होता है ।अन्य शब्दों में किसी संधि पर मिलने वाली धाराओं का बीजगणितीय योग शून्य होता है। अर्थात् Σ I = 0 किरचॉफ का प्रथम नियम आवेश के संरक्षण सिद्धान्त पर आधारित है।
किरचॉफ का द्वितीय नियम या पाश (लूप) नियम (Kirchhoff’s second law)
प्रतिरोधकों तथा सेलों से सम्मिलित किसी बंद लूप के चारों ओर विभव में परिवर्तनों का बीजगणितीय योग शून्य होता है। अर्थात् Σ IR = 0 यह नियम स्थिर विद्युत बल की संरक्षी प्रकृति पर आधारित है।
विद्युत बल्ब
विद्युत बल्ब में काँच के आवरण के अन्दर एक पतला तार होता है, जिसे फिलामेन्ट कहते हैं। यह फिलामेन्ट दो मोटे तारों के मध्य लगा होता है। बल्ब के आधार पर धातु की नोक होती है तथा आधार के ऊपर धात्विक ढाँचा होता है। ये बल्ब के दो टर्मिनल होते हैं जो मोटे तारों से जुड़े होते हैं।
विद्युत ऊर्जा, विद्युत शक्ति (P) व समय (t) के गुणनफल बराबर होती है। अतः विद्युत ऊर्जा $$E = Pt$$ विद्युत ऊर्जा का मात्रक वाट-सेकण्ड या जूल होता है। विद्युत ऊर्जा का व्यापारिक मात्रक किलोवाट घंटा (kwh) है। जिसे सामान्यतया यूनिट कहते है। 1 kwh = 3.6×106
विद्युत शक्ति
किसी विद्युत परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर धारा के प्रवाह के कारण किये गये कार्य की दर को विद्युत शक्ति कहते हैं। अतः विद्युत शक्ति = किया गया कार्य/समय $$P = \frac{W}{\Delta t}$$ यदि किसी विद्युत परिपथ में विद्युत धारा I समय Δt तक प्रवाहित हो रही है तो आवेश q को विभवान्तर V पर अभीष्ट परिपथ में ले जाने में किया गया कार्य$$ W = qV = IVΔt $$ अतः विद्युत शक्ति $$ P = IV$$ यदि परिपथ का प्रतिरोध R हो तो ओम का नियम प्रयुक्त करने पर विद्युत शक्ति का मान निम्नलिखित प्राप्त होता है $$P = IR^2 $$ विद्युत शक्ति का SI मात्रक वाट होता है, जो कि जूल/सेकण्ड के तुल्य होता है।
- 1 किलोवाट = 1000 वाट = 103 वाट
- 1 मेगावाट = 1000 किलोवाट = 106 वाट
विद्युत शक्ति के मापन का प्रचलित मात्रक अश्व शक्ति है।
अश्व शक्ति
अश्वशक्ति (Horsepower) शक्ति की मापन इकाई है। यह एक गैर SI इकाई है। वाहनों के इंजन के लिये शक्ति की इकाई अश्व शक्ति होती है।
1 अश्व शक्ति = 746 वॉट
सेल का ऊपरी सिरा (टोपी) धनात्मक व नीचे स्थित जस्ते का वृताकार पैंदा ऋणात्मक होता है। सेल के अन्दर रासायनिक पदार्थ होते हैं, जिनमें रासायनिक क्रिया से हमें विद्युत प्राप्त होती है। लंबे समय तक काम में लेने पर सेल से विद्युत प्रवाह बंद हो जाता है। सेल से विद्युत प्रवाह बन्द हो जाने का अर्थ यह हुआ कि सेल में प्रयुक्त रासायनिक पदार्थों के मध्य क्रिया बंद हो चुकी है। अब हमें उसकी जगह नया सेल उपयोग में लेना पड़ेगा ।
विद्युत वाहक बल
परिभाषा: एकांक आवेश को पुरे परिपथ में प्रवाहित कराने में सेल द्वारा किये गए कार्य को सेल का विद्युत वाहक बल कहते है। इसे ‘E’ से प्रदर्शित करते हैं।
विद्युत वाहक बल का सूत्र: यदि किसी परिपथ में q कुलाम आवेश प्रवाहित होने से सेल द्वारा दी गई ऊर्जा W हो तो सेल के विद्युत वाहक बल का सूत्र E=W/q होता है। इसका मात्रक वोल्ट होता है। विद्युत वाहक बल प्रत्येक सेल का अभिलाक्षणिक गुण होता है।
टर्मिनल विभवान्तर
एकांक आवेश को परिपथ में किन्ही दो बिंदुओं के बीच प्रवाहित कराने में सेल द्वारा किये गए कार्य को उन दो बिंदुओं के बीच का विभवान्तर कहते है। इसे टर्मिनल वोल्टेज भी कहते हैं।
सेल का आतंरिक प्रतिरोध
जब किसी सेल के घोल में विद्युत धारा प्रवाहित होती है तो सेल का घोल विद्युत धारा के मार्ग में प्रतिरोध लगाता है जिसे सेल का आतंरिक प्रतिरोध कहते हैं। इसे r से प्रदर्शित करते हैं।
सेल के आंतरिक प्रतिरोध की निर्भरता
(a) सेल के दोनों प्लेटों के बीच की दूरी पर
सेल का आंतरिक प्रतिरोध सेल के दोनों प्लेटों के बीच के दूरी के समानुपाती होता है।
(b) सेल के विलयन में डूबे प्लेटों के पृष्ठीय क्षेत्रफल पर
आतंरिक प्रतिरोध प्लेटों के द्रव में दुबे हुए क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
(c) सेल के बिलयन की सांद्रता पर
आतंरिक प्रतिरोध विद्युत अपघट्य घोल के सांद्रता के समानुपाती होता है।
(d) सेल के विलयन की प्रकृति तथा ताप पर
विलयन की प्रकृति परिवर्तित हो जाने पर सेल का आतंरिक प्रतिरोध भी बदल जाता है। सेल के लगातार प्रयोग किये जाने पर सेल का ताप बढ़ते रहता है जिससे सेल का प्रतिरोध भी बढ़ता जाता है।
सेल के आतंरिक प्रतिरोध, विद्युत वाहक बल तथा सेल के टर्मिनल विभवान्तर में सम्बन्ध
जहाँ
V = सेल का टर्मिनल विभवान्तर
E = विद्युत वाहक बल
i = विद्युत धारा
r = आतंरिक प्रतिरोध