खरीफ फसलें भारत में प्रमुख खाद्यान्न फसलें हैं। वे देश के लगभग 75% कृषि क्षेत्र में उगाई जाती हैं। खरीफ फसलों में चावल, मक्का, बाजरा, ज्वार, सोयाबीन, कपास और मूंगफली शामिल हैं।
रबी फसलें भी भारत में महत्वपूर्ण हैं। वे देश के लगभग 25% कृषि क्षेत्र में उगाई जाती हैं। रबी फसलों में गेहूं, जौ, जई, चना, मसूर, सरसों और अलसी शामिल हैं।
खरीफ फसल
भारतीय उपमहाद्वीप में खरीफ की फसल उन फसलों को कहते हैं जिन्हें जून-जुलाई में बोते हैं और अक्टूबर- नवम्बर के आसपास काटते हैं। अतः वे फसलें जिन्हें वर्षा ऋतु में बोया जाता है, खरीफ फसल कहलाती है। धान, मक्का, सोयाबीन, मूंगफली, बाजरा, गन्ना, अरण्डी, ग्वार, अफीम, सूरजमुखी आदि खरीफ फसलें हैं।nइन फसलों को बोते समय अधिक तापमान एवं आर्द्रता आवश्यकता होती है। इन फसलों को पकते समय शुष्क वातावरण की आवश्यकता होती है।
खरीफ फसलों को मुख्य रूप से दो वर्गों में बांटा जा सकता है:
- खाद्यान्न फसलें: इन फसलों का उपयोग भोजन के लिए किया जाता है। उदाहरण: धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंग, मूंगफली, सोयाबीन, आदि।
- नकदी फसलें: इन फसलों का उपयोग व्यापार के लिए किया जाता है। उदाहरण: कपास, पटसन, गन्ना, आदि।
खरीफ फसलों की कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
- ये फसलें गर्म और आर्द्र मौसम में उगती हैं।
- इन फसलों को उगाने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है।
- इन फसलों को उगाने के लिए सिंचाई की आवश्यकता होती है।
- इन फसलों की कटाई अक्सर अक्टूबर-नवंबर के महीने में की जाती है।
रबी फसल
शीत ऋतु में उगाई जाने वाली फसलें रबी फसलें के कहलाती है। गेहूं, चना, मटर, सरसों, अलसी, आदि रबी फसलें हैं।
विशेषता | खरीफ फसल | रबी फसल |
---|---|---|
नाम | अरबी शब्द “खरीफ” से आया है, जिसका अर्थ है “पतझड़”। | अरबी शब्द “रबी” से आया है, जिसका अर्थ है “बसंत”। |
बुवाई का समय | जून-जुलाई | अक्टूबर-नवंबर |
कटाई का समय | अक्टूबर-नवंबर | मार्च-अप्रैल |
जलवायु | गर्म और आर्द्र | ठंडी और शुष्क |
जल की आवश्यकता | अधिक | कम |
उपज | अधिक | कम |
उदाहरण | चावल, मक्का, बाजरा, सोयाबीन, कपास, मूंगफली, गन्ना | गेहूं, जौ, जई, चना, मसूर, सरसों, अलसी |
खरपतवार
फसली पादपों के साथ उगे वे अवांछित और अनुपयोगी पादप जो फसल की वृद्धि में बाधा उत्पन्न करते है, खरपतवार कहलाते हैं। विलायती गोखरू ( जैथियम ), गाजर घास ( पारथेनियम ) व मोथा (साइप्रस रोटेंडस) इत्यादि खरपतवार के उदाहरण है। साइप्रस रोटेंडस मोथा एक बहुवर्षीय पौधा है। मोथा एक तरह की घास (Cyperus Rotundus) है जो किसानों के लिए सिर दर्द बनी रहती है। मोथा घास खेती के लिए अभिशाप मानी जाती है क्योंकि यह इतनी तेजी से फैलती है कि खेतों में लगी फसल को बर्बाद कर देती है। मोथा का उन्मूलन कठिन है लेकिन खरपतवार नाशी का कर्षण विधि (निराई गुडाई) के साथ एकीकृत प्रयोग करने से बहुत प्रभावी नियन्त्रण होता है। इसके कन्दों की संख्या 2,4-D व बार-बार जुताई करने से कम हो सकती है।
खरपतवारों के उदाहरण
- एकवर्षीय खरपतवार: ये खरपतवार एक वर्ष या उससे कम समय में अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं। इनमें शामिल हैं:
- बथुआ (Chenopodium album)
- जंगली चौलाई (Amaranthus retroflexus)
- घास (Poaceae)
- जंगली ज्वार (Echinochloa crus-galli)
- हिरनखुरी (Convolvulus arvensis)
- द्विवर्षीय खरपतवार: ये खरपतवार दो वर्षों में अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं। इनमें शामिल हैं:
- जंगली गाजर (Pastinaca sativa)
- कासनी (Sonchus oleraceus)
- दूबघास (Cynodon dactylon)
- बहुवर्षीय खरपतवार: ये खरपतवार कई वर्षों तक जीवित रह सकते हैं। इनमें शामिल हैं:
- मोथा (Cyperus rotundus)
- आइवी (Hedera helix)
- बबूल (Acacia nilotica)
खरपतवारों की पहचान
- दृश्य पहचान: अनुभवी किसान खरपतवारों को उनके लक्षण और विशेषताओं के आधार पर पहचान सकते हैं।
- वनस्पति विज्ञान की पहचान: खरपतवारों की पहचान के लिए वनस्पति विज्ञान की पुस्तकों और अन्य संसाधनों का उपयोग किया जा सकता है।
- माइक्रोस्कोपिक पहचान: खरपतवारों की पहचान के लिए माइक्रोस्कोप का उपयोग किया जा सकता है।
खरपतवार नियंत्रण की विधियां
- यांत्रिक नियंत्रण: खरपतवारों को हाथ से उखाड़ना, जुताई करना या अन्य यांत्रिक विधियों का उपयोग करके नियंत्रित किया जा सकता है।
- रासायनिक नियंत्रण: खरपतवारनाशी का उपयोग करके खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है।
- जैविक नियंत्रण: खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए प्राकृतिक तरीकों का उपयोग किया जा सकता है, जैसे कि कीटों या रोगों का उपयोग करके।