सौरमंडल सूर्य, ग्रह, उपग्रह, धूमकेतु, उल्कापिंड आदि खगोलीय पिंडों का समूह है; जो आकाशगंगा निहारिका में स्थित है।
सूर्य
सूर्य सौरमंडल का एकमात्र तारा है। यह पृथ्वी के सबसे निकटतम तारा है। सूर्य, जलती हुई गैसों का एक विराट पिंड है। इसकी सतह सदैव अशांत एवं अस्थिर रहती है। सौरमंडल में स्थित सभी पिंडों में से सूर्य में सबसे अधिक हाइड्रोजन एवं हीलियम है । सौरमंडल के लिए सूर्य प्रकाश एवं उष्मा का एकमात्र स्रोत है। इसका गुरुत्वाकर्षण सौरमंडल को बांधे रखता है।यह पृथ्वी से लगभग 15 करोड किलोमीटर दूरी पर स्थित है। सूर्य की पृथ्वी से दूरी अधिक होने के कारण सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुंचने में लगभग 8 मिनट 30 सेकंड का समय लगता है। सूर्य की ऊर्जा का स्रोत परमाणु संलयन है।
सौरमंडल में यह सबसे अधिक द्रव्यमान वाला पिंड है और सभी ग्रह इसकी की परिक्रमा करते हैं।
सूर्य सौरमंडल का एकमात्र तारा है। यह पृथ्वी के सबसे निकटतम तारा है। सूर्य, जलती हुई गैसों का एक विराट पिंड है। इसकी सतह सदैव अशांत एवं अस्थिर रहती है। सौरमंडल में स्थित सभी पिंडों में से सूर्य में सबसे अधिक हाइड्रोजन एवं हीलियम है । सौरमंडल के लिए सूर्य प्रकाश एवं उष्मा का एकमात्र स्रोत है। इसका गुरुत्वाकर्षण सौरमंडल को बांधे रखता है।यह पृथ्वी से लगभग 15 करोड किलोमीटर दूरी पर स्थित है। सूर्य की पृथ्वी से दूरी अधिक होने के कारण सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुंचने में लगभग 8 मिनट 30 सेकंड का समय लगता है। सूर्य की ऊर्जा का स्रोत परमाणु संलयन है।
सौरमंडल में यह सबसे अधिक द्रव्यमान वाला पिंड है और सभी ग्रह इसकी की परिक्रमा करते हैं।
सौर हवा
सूर्य के वायुमंडल की बाहरी परत किरीट (Corona) से उत्सर्जित होने वाले आवेशित कणों की बौछार को सौर हवा कहते है। यह कण संपूर्ण सौरमंडल में बिखर जाते है। ये कण मुख्यतः इलेक्ट्रॉन और प्रोटोन होते है। सौर हवा द्वारा लाए गए आवेशित कण पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के कारण पृथ्वी के निकट विकिरण पट्टियों की ओर धकेल दिए जाते है।
सौर चक्र
वैज्ञानिक अनुसंधान से ज्ञात हुआ कि हर 11-वर्ष बाद सूर्य की गतिविधियां, जैसे सौर ज्वालाएं, किरीटीय द्रव्मान उत्सर्जन, सौर-धब्बों की संख्या आदि, अपनी चरम अवस्था में आती हैं, जिन्हें सौर चक्र कहा जाता है।
सूर्य की संरचना
सूर्य सतह एवं वायुमंडल की परतों में होने वाली गतिविधियों का संबंध उसकी आंतरिक संरचना से है। इसके भीतर की विभिन्न गहराइयों से दोलित तरंगें निकलती हैं, जिनके द्वारा वैज्ञानिक सूर्य के आंतरिक रहस्य की जानकारी प्राप्त होती है। सौर-कम्पनविज्ञान द्वारा सूर्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिली है।
पृथ्वी से सूर्य की दूरी कितनी है?
पृथ्वी से सूर्य की औसत दूरी लगभग 14 करोड़ 96 लाख किलोमीटर (149.6 million kilometers) या 9 करोड़ 29 लाख 60 हजार मील (93 million miles) है। इसे वैज्ञानिक भाषा में एक खगोलीय इकाई (AU) भी कहते हैं।
यह दूरी स्थिर नहीं रहती है, क्योंकि पृथ्वी अपनी कक्षा में सूर्य के चारों ओर अंडाकार (elliptical) गति करती है। पृथ्वी सूर्य के सबसे निकट बिंदु (perihelion) पर 14 करोड़ 70 लाख किलोमीटर (147.1 million kilometers) और सबसे दूर बिंदु (aphelion) पर 15 करोड़ 24 लाख किलोमीटर (152.1 million kilometers) की दूरी पर होती है।
सूर्य से पृथ्वी की दूरी इतनी अधिक होने के कारण ही सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक आने में 8.3 मिनट का समय लग जाता है।
सूर्य की उम्र क्या है?
सूर्य की उम्र 4.57 अरब वर्ष अनुमानित है।
सौरमंडल के ग्रहों के नाम
अंतर्राष्ट्रीय खगोलशास्त्रीय संघ के अनुसार ग्रहों की संख्या आठ है, जो कि निम्नलिखित है-
बुध ग्रह
बुध (mercury) सूर्य के सबसे निकटतम ग्रह है। इसका जो भाग सूर्य के सामने आता है उसका तापमान 427 डिग्री सेल्सियस होता है। यहां वायुमंडल नहीं पाया जाता है। यहां दिन अति गर्म और रातें बर्फीली होती है। यह आंतरिक एवं धरातलीय ग्रह है। यह आकार में सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह है। इसका पड़ोसी ग्रह शुक्र है। इसको सूर्य की एक परिक्रमा करने में 88 दिन लगते है। यह अपने अक्ष पर 59 दिन में एक घूर्णन पूरा करता है। इसका कोई उपग्रह नहीं है।
इसे सूर्यास्त और सूर्योदय के समय क्षितिज के निकट देखा जा सकता है। इसकी सतह पर कई क्रेटर स्थित है। इस ग्रह का आधा भाग काफी उच्च तापमान पर होता है तथा दूसरा भाग काफी न्यून तापमान पर। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसके घूर्णन और परिक्रमण काल लगभग एक समान है। इस कारण इसका एक ही भाग सदैव सूर्य की ओर रहता है। इसकी सतह का तापमान +340 डिग्री सेल्सियस से -270 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है।
द्रव्यमान | 0.33×1024 kg |
व्यास | 4879 Km |
सूर्य से दूरी | 57.9 ×106 km |
कक्षीय गति काल | 88 दिन |
घूर्णन गति काल | 1407.6 घंटे |
शुक्र ग्रह
यह पृथ्वी के सबसे नजदीकी ग्रह है जो पृथ्वी से 40 लाख किलोमीटर दूर है। यह अत्यंत गर्म ग्रह है जिस का तापक्रम 480 डिग्री सेल्सियस है। इसकी सतह चट्टानों व ज्वालामुखी से भरी पड़ी है। आकार व द्रव्यमान में पृथ्वी के लगभग समान होने के कारण इससे पृथ्वी की बहिन भी कहते हैं।
शुक्र ग्रह को बादलों से घिरा ग्रह कहते है। इसके चारों ओर सल्फ्यूरिक अम्ल के बादलों का घेरा है। इसमें कुछ मात्रा में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल भी उपस्थित होता है। इसके वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन और जलवाष्प, सल्फ्यूरिक अम्ल, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, आर्गन इत्यादि। इसके वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता के कारण यह अत्यधिक गर्म ग्रह है।
यह सबसे चमकीला ग्रह है जिसके कारण इसे भोर का तारा व सांझ का तारा कहते हैं। शुक्र वास्तव में एक ग्रह है न कि तारा। शुक्र ग्रह को भोर का तारा कहते है। शुक्र ग्रह को हम सूर्योदय से लगभग 3 घंटे पहले देख सकते है यदि वे प्रातः कालीन ग्रह हो।
शुक्र ग्रह को सांझ का तारा कहते है। शुक्र वास्तव में एक ग्रह है न कि तारा। शुक्र ग्रह को हम सूर्योस्त के लगभग 3 घंटे पश्चात देख सकते है यदि वो सांय कालीन ग्रह हो।
पृथ्वी
पृथ्वी सौरमंडल का एकमात्र ऐसा ग्रह है जहां पर जीवन पाया जाता है। पृथ्वी अपनी अक्ष पर घूमती रहती है जिससे 24 घंटे का दिन व रात का चक्र बनता है। पृथ्वी पूर्व से पश्चिम दिशा में घूर्णन करती है। पृथ्वी अपनी अक्ष पर चक्कर लगाने के साथ-साथ सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है, जिसमें 365 दिन लगते है। पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा चक्कर लगाता है तथा चंद्रमा को एक चक्र पूरा करने में 27.33 दिन रखते है। चंद्रमा पर जल, हवा व जीवन नहीं पाया जाता है
मंगल ग्रह (लाल ग्रह)
यह पृथ्वी का पड़ोसी ग्रह है। इसे लाल ग्रह भी कहते है। यह अन्य ग्रहों की तुलना में ठंडा है। मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना हो सकती है। इसकी मिट्टी में लौह ऑक्साइड की अधिकता के कारण इस कारण इसका रंग रक्ताभ प्रतीत होता है। अतः इसे लाल ग्रह कहते है। मंगल के दो छोटे प्राकृतिक उपग्रह फोबोस एवं डेमोस है। इसके वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, ऑर्गन गैस पाई जाती है मंगल ग्रह पर ज्वालामुखीयों की संख्या अत्यधिक है। यहां सबसे बड़ा ज्वालामुखी ओलंपस मोंस है।
शनि ग्रह
शनि ग्रह के चारों ओर की वलय वास्तव में हजारों की संख्या में सर्पीली तरंगों की पेटीयां क्या है। इसके चारों ओर गैस व हीमकण के छोटे-छोटे चट्टानों के मलबे का घेरा है। इसमें मुख्यतः हाइड्रोजन व हीलियम गैसें पाई जाती है। इसमें हाइड्रोजन सायनाइड जैसी विषैली गैसे भी पाई जाती है। इसका तापमान 187 डिग्री सेल्सियस होता है।
शनि ग्रह वलयों से घिरा ग्रह कहलाता है। शनि के चारों ओर वलय पाए जाते हैं जिन्हें सामान्य दूरबीन से भी देखा जा सकता है। इन वलयों के किनारे पर परिक्रमा करने वाले इसके कई उपग्रह है। इसकी मुख्य उपग्रह फोबे, टेथिस तथा मिमास है।
बृहस्पति ग्रह
बृहस्पति सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। इसे अमोनिया के बादलों का गोला भी कहते है, जो अत्यंत तेजी से घूमता रहता है। इसकी सतह भी ठोस नहीं है। इसका प्रसिद्ध लाल धब्बा वास्तव में अशांत बादलों के घेरे में स्थित विशाल चक्रवात है। इसके 16 उपग्रह हैं। गैनिमीड, आयो, यूरोपा, कैलिस्वौ आदि बृहस्पति के प्रमुख उपग्रह है।
वरुण ग्रह
वरुण, पृथ्वी के मुकाबले बहुत ही छोटा एवं ठंडा ग्रह है। इस पर अत्यधिक अंधकार है। यह सौरमंडल का अंतिम ग्रह है तथा सूर्य से सबसे दूर स्थित है।
अरुण ग्रह
यह बहुत ही ठंडा ग्रह है। सूर्य से दूरी के दृष्टि से सातवें स्थान पर है। इसकी घूर्णन धूरी सबसे अधिक झुकी हुई है। अरुण (Uranus) ग्रह को हरा ग्रह कहते है। इसके बाहरी वायुमंडल में मीथेन और अमोनिया के बादल उपस्थित रहते है, जिसके कारण यह हरा प्रतीत होता है।
ग्रह | सूर्य से दूरी (किमी) | व्यास (किमी) | द्रव्यमान (पृथ्वी का गुना) | घनत्व (ग्राम/सेमी^3) | कक्षीय अवधि (वर्ष) | घूर्णन अवधि (दिन) |
---|---|---|---|---|---|---|
बुध | 57.91 मिलियन | 4,879 | 0.055 | 5.42 | 0.241 | 58.646 |
शुक्र | 108.2 मिलियन | 12,104 | 0.815 | 5.24 | 0.621 | 243.024 |
पृथ्वी | 149.6 मिलियन | 12,742 | 1 | 5.51 | 1 | 23.934 |
मंगल | 227.9 मिलियन | 6,792 | 0.107 | 3.93 | 1.881 | 24.622 |
बृहस्पति | 778.5 मिलियन | 142,984 | 318 | 1.33 | 11.862 | 9.925 |
शनि | 1,429.6 मिलियन | 120,536 | 95.1 | 0.69 | 29.457 | 10.756 |
यूरेनस | 2,870.9 मिलियन | 51,118 | 14.5 | 1.27 | 84.01 | 17.24 |
नेपच्यून | 4,504.3 मिलियन | 49,538 | 17.1 | 1.64 | 164.81 | 16.102 |
सौरमंडल के उपग्रह
ग्रहों के चारों ओर चक्कर लगाने वाले आकाशीय पिंडों को उपग्रह कहते है। पृथ्वी का उपग्रह चंद्रमा है।
सौरमंडल के उपग्रह
ग्रह | उपग्रहों की संख्या |
---|---|
बुध | 0 |
शुक्र | 0 |
पृथ्वी | 1 |
मंगल | 2 |
बृहस्पति | 80 से अधिक |
शनि | 82 |
यूरेनस | 27 |
नेपच्यून | 14 |
पृथ्वी का चंद्रमा
पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा है। यह हमारे सौर मंडल का पांचवां सबसे बड़ा उपग्रह है। चंद्रमा का व्यास पृथ्वी के व्यास का लगभग एक चौथाई है। इसका गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का लगभग एक-छठा हिस्सा है। चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर लगभग 27.3 दिनों में एक चक्कर लगाता है।
बृहस्पति के उपग्रह
बृहस्पति के 80 से अधिक उपग्रह हैं। इनमें से सबसे बड़ा उपग्रह गैनिमीड है, जो हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा उपग्रह है। गैनिमीड का व्यास पृथ्वी के चंद्रमा के व्यास से लगभग दोगुना है। बृहस्पति के अन्य प्रमुख उपग्रहों में कैलिस्टो, यूरोपा और आयो शामिल हैं।
शनि के उपग्रह
शनि के 82 उपग्रह हैं। इनमें से सबसे बड़ा उपग्रह टाइटन है, जो बृहस्पति के उपग्रह गैनिमीड के बाद हमारे सौर मंडल का दूसरा सबसे बड़ा उपग्रह है। टाइटन का एक घना वायुमंडल है जिसमें मीथेन और अन्य हाइड्रोकार्बन होते हैं। शनि के अन्य प्रमुख उपग्रहों में रिआ, टेथीस, एन्सेलस और मिमास शामिल हैं।
यूरेनस के उपग्रह
यूरेनस के 27 उपग्रह हैं। इनमें से सबसे बड़ा उपग्रह टाइटेनिया है। टाइटेनिया का व्यास लगभग 1,578 किलोमीटर है। यूरेनस के अन्य प्रमुख उपग्रहों में ओबेरॉन, अर्रियल और उम्ब्रिएल शामिल हैं।
नेपच्यून के उपग्रह
नेपच्यून के 14 उपग्रह हैं। इनमें से सबसे बड़ा उपग्रह ट्राइटन है। ट्राइटन का व्यास लगभग 2,706 किलोमीटर है। ट्राइटन का एक घना वायुमंडल है जिसमें मीथेन और अन्य हाइड्रोकार्बन होते हैं। नेपच्यून के अन्य प्रमुख उपग्रहों में प्रॉटेयस, निरेइड और नेरेइड शामिल हैं।
सौर मंडल के उपग्रहों की कुछ अन्य विशेषताएं
- कई उपग्रहों में क्षुद्रग्रहों या धूमकेतुओं के टुकड़ों से बना एक अनियमित आकार होता है।
- कुछ उपग्रहों में अपना स्वयं का वायुमंडल होता है, जबकि अन्य में कोई नहीं होता है।
- कुछ उपग्रहों पर सक्रिय ज्वालामुखी या भूकंप होते हैं, जबकि अन्य स्थिर होते हैं।
चंद्रमा
पृथ्वी का सबसे नजदीकी गोलाकार आकाशीय पिंड चंद्रमा है। यहां जल एवं वायु का अभाव है। इसलिए यहां जीवन संभव नहीं है। चंद्रमा का धरातल पृथ्वी के धरातल की तरह ही उबड़-खाबड़ है। चंद्रमा की तुलना में पृथ्वी लगभग 81 गुना बड़ी है। चंद्रमा पर दिन में बहुत अधिक गर्मी एवं रात्रि में बहुत अधिक ठंड पड़ती है। इसलिए वहां का वातावरण जीवन के अनुकूल नहीं है। चंद्रमा को अपने अक्ष पर घूमने में लगभग 29 दिन एवं पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने में 27 दिन लगते है।
सौर मंडल के बौना ग्रह
सौर मंडल में पांच ज्ञात बौना ग्रह हैं:
- प्लूटो
- सेरेस
- हउमेया
- माकेमेक
- ऍरिस
प्लूटो
प्लूटो सौरमंडल का सबसे प्रसिद्ध बौना ग्रह है। इसे पहले एक ग्रह माना जाता था, लेकिन 2006 में इसे बौना ग्रह का दर्जा दिया गया। प्लूटो का व्यास लगभग 2,377 किलोमीटर है। यह कुइपर बेल्ट में स्थित है, जो सूर्य से लगभग 4.4 अरब किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक क्षेत्र है। प्लूटो के पास पांच चंद्रमा हैं: चारोन, निक्स, हाइड्रा, स्टिक्स और केरोन।
्सन् 2006 तक प्लूटो को भी एक ग्रह माना जाता था। लेकिन नए प्रमाणों के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संगठन ने प्लूटो को बौने ग्रह का दर्जा दिया गया।
सेरेस
सेरेस क्षुद्रग्रह बेल्ट में स्थित एक बौना ग्रह है। इसका व्यास लगभग 950 किलोमीटर है। सेरेस का एक घना वायुमंडल है जिसमें पानी की भाप और अन्य गैसें होती हैं। सेरेस के पास दो चंद्रमा हैं: एन्सेलेट और ऑर्बेट।
हउमेया
हउमेया कुइपर बेल्ट में स्थित एक बौना ग्रह है। इसका व्यास लगभग 1,500 किलोमीटर है। हउमेया का एक अजीब आकार है, जिसमें एक लंबी धुरी और एक छोटी धुरी होती है। हउमेया के पास दो चंद्रमा हैं: नकिया और हिमाली।
माकेमेक
माकेमेक कुइपर बेल्ट में स्थित एक बौना ग्रह है। इसका व्यास लगभग 1,400 किलोमीटर है। माकेमेक का एक अजीब आकार है, जिसमें एक लंबी धुरी और एक छोटी धुरी होती है। माकेमेक के पास एक चंद्रमा है जिसका नाम S/2015 (136472) 1 है।
ऍरिस
ऍरिस कुइपर बेल्ट में स्थित एक बौना ग्रह है। इसका व्यास लगभग 2,377 किलोमीटर है। ऍरिस प्लूटो से बड़ा है, लेकिन यह सूर्य से अधिक दूरी पर स्थित है। ऍरिस के पास एक चंद्रमा है जिसका नाम डिस्नोमिया है।
बौना ग्रहों की विशेषताएं
बौना ग्रहों को निम्नलिखित विशेषताओं के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है:
- वे एक तारे के चारों ओर परिक्रमा करते हैं।
- वे पर्याप्त गुरुत्वाकर्षण बल रखते हैं ताकि उनके पास लगभग गोलाकार आकार हो।
- वे अन्य ग्रहों के साथ छेड़छाड़ के बिना अपनी कक्षाओं को साफ करते हैं।
बौना ग्रहों की कुछ अन्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
- कई बौना ग्रहों में चंद्रमा होते हैं।
- कुछ बौना ग्रहों में अपना स्वयं का वायुमंडल होता है।
- कुछ बौना ग्रहों पर सक्रिय ज्वालामुखी या भूकंप होते हैं।
धूमकेतु
धूमकेतु सौरमंडल के बर्फीले, छोटे पिंड होते हैं जो पत्थर, धूल, बर्फ और गैस के बने होते हैं। यह ग्रहों की तरह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। छोटे पथ वाले धूमकेतु सूर्य की परिक्रमा एक अण्डाकार पथ में लगभग ६ से २०० वर्ष में पूरी करते हैं। कुछ धूमकेतु का पथ वलयाकार होता है और वो मात्र एक बार ही दिखाई देते हैं। लम्बे पथ वाले धूमकेतु एक परिक्रमा करने में सहस्त्र वर्ष लगाते हैं।
धूमकेतु के तीन मुख्य भाग होते हैं:
- नाभि: धूमकेतु का केन्द्र होता है जो पत्थर और बर्फ का बना होता है।
- कोमा: नाभि के चारों ओर गैस और घुल के बादल को कोमा कहते है।
- पूंछ: नाभि तथा कोमा से निकलने वाली गैस और धूल एक पूंछ का आकार ले लेती है।
जब धूमकेतु सूर्य के नजदीक आता है, सौर-विकिरण के प्रभाव से नाभि की गैसों का वाष्पीकरण हो जाता है। इससे कोमा का आकार बढ़कर करोड़ों मील तक हो जाता है। कोमा से निकलने वाली गैस और घूल अरबों मील लम्बी पूछ का आकार ग्रहण कर लेती है। सौर-हवा के कारण यह पूछ सूर्य से उल्टी दिशा में होती है। जैसे-जैसे धूमकेतु सूर्य के नजदीक आता है, पूंछ का आकार बढ़ता जाता है।
धूमकेतु हमारे सौर मंडल के शुरुआती तत्व हैं। धूमकेतुओं के अध्ययन से सौर मंडल के निर्माण की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इससे ब्रह्मांड के कई रहस्य खुल सकते हैं। धूमकेतु की पूंछ के अवशेष कभी-कभी पीछे रह जाते हैं। जब पृथ्वी इन अवशेषों के पास से गुज़रती है तो इन अवशेषों से उल्का वृष्टि दिखाई देती है। धूमकेतु की कक्षा के अध्ययन से यह भी जानकारी मिलती है कि धूमकेतु किसी ग्रह से टकराएगा या पृथ्वी से टकरा सकता है। इन वजहों से भी धूमकेतुओं का अध्ययन आवश्यक है।
कुछ प्रसिद्ध धूमकेतुओं में शामिल हैं:
- हैली धूमकेतु: यह सबसे प्रसिद्ध धूमकेतु है जो हर ७६ वर्ष में एक बार दिखाई देता है।
- इकारस धूमकेतु: यह एक लघु-अवधि धूमकेतु है जो सन 1968 में पृथ्वी के बहुत करीब से गुज़रा था।
- चियोकोस्को धूमकेतु: यह एक लघु-अवधि धूमकेतु है जो सन 1986 में पृथ्वी के बहुत करीब से गुज़रा था।
उल्कापिंड
उल्कापिंड अंतरिक्ष के मलबे का एक ठोस टुकड़ा है, जैसे कि धूमकेतु, क्षुद्रग्रह, या उल्कापिंड, जो बाहरी अंतरिक्ष में उत्पन्न होता है और किसी ग्रह या चंद्रमा की सतह तक पहुंचने के लिए वायुमंडल से होकर गुजरता है।
उल्कापिंडों का आकार कुछ मिलीमीटर से लेकर कई मीटर तक हो सकता है। कुछ उल्कापिंड इतने बड़े होते हैं कि वे वायुमंडल में प्रवेश करते समय विस्फोट हो जाते हैं। इस घटना को उल्कापिंड विस्फोट कहा जाता है।
उल्कापिंडों का वर्गीकरण उनके संगठन के आधार पर किया जाता है। कुछ उल्कापिंड मुख्य रूप से लोहे और निकल से बने होते हैं, जबकि अन्य मुख्य रूप से सिलिकेट खनिजों से बने होते हैं।
उल्कापिंडों के कुछ महत्वपूर्ण प्रकारों में शामिल हैं:
- आश्मिक उल्कापिंड: ये उल्कापिंड मुख्य रूप से सिलिकेट खनिजों से बने होते हैं।
- धात्विक उल्कापिंड: ये उल्कापिंड मुख्य रूप से लोहे और निकल से बने होते हैं।
- धात्विक-आश्मिक उल्कापिंड: ये उल्कापिंड लोहे और निकल के साथ-साथ सिलिकेट खनिजों से बने होते हैं।
उल्कापिंडों का अध्ययन खगोल विज्ञान के कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है, जिनमें शामिल हैं:
- सौर मंडल का निर्माण और विकास: उल्कापिंडों के अध्ययन से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि सौर मंडल कैसे बना और विकसित हुआ।
- ग्रहों और चंद्रमाओं का निर्माण: उल्कापिंडों के अध्ययन से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि ग्रहों और चंद्रमाओं का निर्माण कैसे हुआ।
- जीवन की उत्पत्ति: उल्कापिंडों के अध्ययन से हमें यह समझने में मदद मिल सकती है कि जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई।